बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

ये कौन सा ववंडर है ?

दो रूहों के दरम्यान
एक ही पैमाने का होना
कितना दुष्कर है ?
परखना, महसूस करना
तुम्हारी धड़कन को, 
और ये जानना भी  कि..
हर जिद्दी सवाल के मोड़ पर
जिस्म के जंजाल जी उठते हैं
व्यर्थ-अनर्थ योग मिल उठते हैं.. 

ये कौन सा ववंडर है ?

चुपचाप अनगढ़ फैसला,
सबको उल्टा लटकाता है
मारकर तड़पाता है...
कितना दुष्कर है ?
समझना, समझाना
तुम्हारी पर्वत सी समझ को..
और ये मानना भी कि,
बसंत में ह्रदय से आह जन्म लेते हैं
चिथड़ों में लिपटे साये सिमट लेते हैं.

ये कौन सा ववंडर है ?

सरल सुलगता धुंआ
सबको बेहिसाब जलाता है
अनंत आग लहराता है
कितना दुष्कर है ?
क्षण दर क्षण जीना-मरना,
तुम्हारी बहकी हुई आगोश में...
और ये मानना भी कि..
जब निर्लिप्त मुस्कुराती हो
गैर इरादतन हौसला हो जाती हो.

ये कौन सा ववंडर है ?

यूँ ही जीता हुआ मन
कच्ची सहर तक जगमगाता है
नाहक़ कोशिशों में कसमसाता है
कितना दुष्कर है ?
पंखुरियों सा बरसना-बरसाना
नेमतों की राख को,
और ये मानना भी कि..
तुम जब समंदर सा हो जाती हो
मीठी खुशबू में उतर आती हो.

ये कौन सा ववंडर है ?

हवा की मनचाही दखल
दूर तक पत्थरों को उडाती है
सुकून के आँचल लहराती है
कितना दुष्कर है ?
समेटना-सहेजहना,
सजदे को सब्र से..
और ये मानना भी कि..
प्रेम आत्मा का विस्तार है
तिनका-तिनका रूह का आधार है.