शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

तुम कौन हो...

तुमने सत्य कहा..
दारुण्य वक़्त में
अयाचित सत्य से परे
सब खत्म करने को भी कहा ...
तुम कौन हो ?
बेपरवाह कुछ भी..
कह देते हो..
सुना देते हो...
अंतस का ताप.
तुम नहीं थे सिर्फ 
एहसास भर के लिए..
तुमने समेट लेने को कहा.
मायामय फेहरिस्त व मीन मेख
तुम कौन हो ?
उम्मीदों की धूप जैसे
बिखरते हो कहीं भी..
और उतर जाते हो..
एकदम भीतर
360 डिग्री के शक्ति संपन्न स्पेस पर..
कूटाख्यान शब्दों को
तोड़-मरोड़ कर 
अनुरक्त डुबोते हो..
धवल चैतन्य स्पर्श में 
तुम रिसते-भींगते
तप्त आस हो शायद !!!

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

...जो भोली सी उदासी है


यार जिंदगी...
मेरे-तुम्हारे भीतर
लय में उठता हुआ
धधकता हुआ जो सब्र है...
वो कोई तंज नहीं है
चेहरे का.
वो कोई पीड़ा नहीं है
सब्र के सब्र का
पर, दुःख कहाँ नहीं है....?
किसी अजनबी को
सब कुछ सौंपते हुए
नहीं सोचते हम
कि सपनों में जीते हुए
कि उलझन में गलते हुए
बहते ह्रदय की
जो भोली सी उदासी है...
वो कितनी मारक है..
अब कोई शब्द नहीं है
किताबों में,
कोई स्पर्श भी नहीं
अतीत के संवादों का
पर, दुःख कहाँ नहीं है.....?
यार जिंदगी...
मेरे-तुम्हारे भीतर
कई सौ चेहरे हैं 
सब बेमेल, अनगढ़ा
गैरवाजिब सा उगता हुआ.. 
स्वांग में डूबा 
मेरे जिस्म में भी 
कलपते खालीपन की जो आदत है...
वो मेरा दुःख नहीं है..
मैं तेरे जिद्दी हौसले की
कसम खाकर कहता हूँ कि
सब्र, उदासी, सपने
ये मेरा दुःख नहीं है..
प्यार, मोहब्बत के किस्से
मेरा दुःख नहीं है..
तुम्हें अपना सब कुछ मानकर
ह्रदय से हारकर
यह घोषणा करता हूँ कि
मेरी थकी-हारी निष्काम रातें
शून्य सपाट निर्दोष हादसे
मेरा सरल निश्छल समंदर
व अनंत अगाध आत्मीयता ही
शायद मेरा दुःख है...