गुरुवार, 18 जुलाई 2013

सफ़ेद उम्मीदों के बीच...


सफ़ेद उम्मीदों का
शब्द लिए
बच्चे बीन रहे हैं
टेढ़े-मेढ़े सपने..
तोड़- मरोड़ कर
पढ़ी जा रही है कहानियाँ
उलटी धाराओं में
पानी पीटकर
नदी बो रही है
स्वर्णिम सूर्य का चेहरा .....
एक मुद्दत के बाद
रात भर
ठंडी दूब टपक रही है
जैसे ठंडे जिस्मों से
कोपलें रिस रही हो ....
मुझे दिख रहा है
शब्दों, कहानियों का
परास्त आदमी
तिलस्म के ढेर में
सफ़ेद उम्मीदों के
बीच अलोप हुआ जा रहा है..... 

10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह.....
    बेहद खूबसूरत.....

    पुराने blog का क्या हुआ????

    शुभकामनाएं
    अनु

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  2. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद

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  3. श्वेत रंग ...जहां हर रंग हो .....स्वप्निल से एहसास .....सुंदर सृजन ....

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  4. कितने सुन्दर भाव प्रेषित किये हैं आपने. बहुत सुन्दर रचना बनी है.

    नए ब्लॉग का आवरण पसंद आया. कृपया ब्लॉग अनुसरण या ईमेल से पोस्ट अनुसरण का लिंक भी दे दें तो बहुत अच्छा रहेगा.

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  5. ये उम्मीद ही है जो ज़िंदा रखती है ...
    बहुत खूब ...

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  6. सफ़ेद उम्मीदों का
    शब्द लिए
    बच्चे बीन रहे हैं
    टेढ़े-मेढ़े सपने..
    तोड़- मरोड़ कर
    पढ़ी जा रही है कहानियाँ
    उलटी धाराओं में
    पानी पीटकर
    नदी बो रही है
    स्वर्णिम सूर्य का चेहरा .....

    बहुत गहन और सुंदर अनुभूति
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी पधारें
    केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------

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  7. मेरे ब्लॉग में भी पधारें
    शब्दों की मुस्कुराहट पर .... हादसों के शहर में :)

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  8. शुक्रिया आपके निरंतर प्रोत्साहन का .

    जवाब देंहटाएं
  9. बीने जा रहे सपने...

    यही तय करेंगे दिशा!

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